Friday 12 December 2014

आइये जाने (Piles) बवासीर के कारण, लक्षण, बवासीर का प्रभावी घरेलु उपचार !!

इस बीमारी को अर्श, पाइसया  मूलव्याधि के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद खून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमजोरी जाती है और मल त्याग के वक्त जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से खून बहने लगता है।


 बवासीर के कारण 
कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।
बवासीर का प्रमुख लक्षण है गुदा मार्ग से रक्तस्राव जो शुरूआत में सीमित मात्रा में मल त्याग के समय या उसके तुरंत बाद होता है। यह रक्त या तो मल के साथ लिपटा होता है या बूंद-बूंद टपकता है। कभी-कभी यह बौछार या धारा के रूप में भी मल द्वारा से निकलता है। अक्सर यह रक्त चमकीले लाल रंग का होता है, मगर कभी-कभी हल्का बैंगनी या गहरे लाल रंग का भी हो सकता है। कभी तो खून की गिल्टियां भी मल के साथ मिली होती हैं

  • मलद्वार के आसपास खुजली होना
  • मल त्याग के समय कष्ट का आभास होना
  • मलद्वार के आसपास पीडायुक्त सूजन
  • मलत्याग के बाद रक्त का स्त्राव होना
  • मल्त्याग के बाद पूर्ण रुप से संतुष्टि महसूस करना
खूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है।
बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, ददॅ, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी जवान में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रक़ार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है।

१. हर रोज दही और छाछ खाने से बवासीर होने की संभावना बहुत काम होती है। 
२. अमला पेट के लिए बहुत लाभदायक होता है और अमला के चूर्ण को सुबह - शाम सहद के साथ खाने से बवासीर ठीक रहता है। 
३. मक्खन के साथ धुले हुआ कला तिल मिला कर खाने से बवासीर ठीक हो जाता है, ध्यान रखे मक्खन ताजा हो। 
४. गुड के साथ हरड़ खाने से बवासीर ठीक होता है। 
५. जीरे की भूनकर और पीसकर मिश्री के साथ मिला कर खाने से बवासीर ठीक होता है, साथ ही जीरे को पीसकर मासे पर लगाने से बवासीर में आराम मिलता है।
६. बड़ी इलाइची को भूनकर चूर्ण बना ले, इस चूर्ण को सुबह साम खली पेट खाने से बवासीर ठीक हो जाता है।    
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